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लेखनी कहानी -04-Oct-2022 जालोर की रानी जैतल दे का जौहर

भाग 4 


रंगशाला में "वर्ष का सर्वश्रेष्ठ योद्धा" घोषित होने के बाद राजकुमार बीरमदेव के चेहरे पर रौनक और बढ गई थी । पहले ही कान्ति का सूरज दमकता था उनके चेहरे से अब उसमें तेज की मात्रा और बढ गयी थी जैसे घर में दो बल्ब की रोशनी के बावजूद एक बल्ब और लगा देने से रोशनी बढ जाती है उसी प्रकार से बीरमदेव के चेहरे की चमक दुगनी हो गई थी । 

सब लोग भोजन के लिए "भोजन कक्ष" में आ गये । नाना भांति के व्यंजन बनाये गये थे । मालपुआ, खीर, कलाकंद, जलेबी, दही बड़ा, गुजिया, घेवर और न जाने क्या क्या मिठाइयां बनाई गईं । दाल मखानी, दाल तड़का , उड़द की दाल और कई तरह की सब्जियां भी बनाई गई थीं । बेझड़ की रोटी , लहसुन की चटनी बाजरे का सोगरा और हरी मिर्च के "टपोरे" खास आकर्षण थे । सब लोग भोजन पर टूट पड़े । जमकर आनंद लिया भोजन का । 

भोजन के बाद देश काल की घटनाओं पर चर्चा होने लगी । विगत तीन वर्षों से बरसात कम हो रही थी । इस साल तो काफी कम हुई थी । लगभग अकाल ही पड़ा था पूरे राजपूताने में । फसल हुई नहीं तो चारा भी कैसे होता ? क्या इंसान और क्या जानवर ? दोनों ही भूख के मारे बेहाल थे । राजा कान्हड़देव ने जगह जगह पर अनाज और चारे के भंडार खोल दिये थे । लगान माफ कर दिया गया था । जगह जगह भंडारे भी लगाये जा रहे थे । राजा शीतलदेव के आग्रह पर सिवाना को भी अनाज और चारे की व्यवस्था कर दी थी राजा कान्हड़देव ने । इस अनुग्रह पर शीतलदेव कायल हो गये थे राजा कान्हड़देव के । अन्य समसामयिक घटनाओं पर भी बातें होने लगीं थीं उनमें । 

इधर रानी जैतल दे अपने साथ रानी मैना दे और राजकुमारी हेमा दे को ले आईं । अन्य स्त्रियां जैसे सेनापति बीका जी की पत्नी हीरा दे , मंत्री जैतसिंह की पत्नी उगमकंवर वगैरह भी उनके साथ आ गईं । घर पर आकर रानी जैतल दे अपने पूजा घर में आ गईं । पूजा घर में भगवान राम,कृष्ण, भोले भंडारी,  गणेश जी के साथ माता दुर्गा की प्रतिमाएं थीं । एक दो चित्र स्त्रियों के भी बने हुए थे वहां पर । उन चित्रों को देखकर हर एक के मन में यह प्रश्न कुलबुलाने लगा कि ये दो चित्र किन के हैं ? कौन हैं ये दोनों औरतें ? पर पूछने की हिम्मत किसी में नहीं थी । 

रानी जैतल दे उनकी इच्छाओं को भली प्रकार से जान गई थीं । उन्हों कहा "ये दोनों औरतें हैं आधुनिक देवियां" । इन्होंने अपना उत्सर्ग करके जो मुकाम हासिल किया है वह स्थान और कोई नहीं ले सकता है । यहां तक कि देवता भी नहीं" । 
"वो तो ठीक है , पर ये हैं कौन ? अब तो इस रहस्य से पर्दा उठा ही दो दीदी" रानी मैना दे बोलीं । 
"जरूर । पर्दा तो उठाना ही पड़ेगा अब । आखिर सबको पता तो चलना चाहिए ना इनके बारे में । ये हैं रणथम्भौर की महारानी रंग दे और दूसरी हैं चित्तौड़गढ की महारानी पद्मिनी । अब समझ में आया कुछ" ? 
"कुछ कुछ आ रहा है दीदी । पर इनके चित्र यहां भगवानों के समकक्ष क्यों लगा रखे हैं आपने ? हमने तो सुना था कि इन दोनों महारानियों ने जौहर कर लिया था और अपने साथ हजारों क्षत्राणियों ने हंसते हंसते खुद को आग की लपटों में भस्म कर लिया था । क्या यह सच है दीदी" ? 
"एकदम सोलह आने सच है रानी सा । इन दोनों महान रानियों ने हम राजपूत स्त्रियों को वो रास्ता दिखाया है जो आज तक किसी और ने नहीं दिखाया था । जब से भारत में ये "तुर्क" आये हैं और इनका दिल्ली पर कब्जा हुआ है , तब से ये "तुर्क" आये दिन हिन्दुओं की बहन बेटियों को उठाकर ले जाते हैं , उन्हें खराब करते हैं और उन्हें अपने घरों में गुलाम बनाकर लेते हैं । बेचारी ऐसी स्त्रियों के पास अत्याचार सहन करने के अतिरिक्त अन्य कोई विकल्प नहीं होता है , इसलिए वह दासता झेलने पर विवश हैं , दुष्कर्म सहने को मजबूर है । उनकी चीख पुकार सुनने वाला कोई नहीं है । ऊपर वाला भी न जाने क्यों खामोश है इस नृशंसता पर । सुनते हैं कि एक द्रोपदी के शाप ने पूरे कौरव वंश को मटियामेट कर दिया था । परन्तु यहां तो न जाने कितनी द्रोपदियां रोज अपनी अस्मत लुटवाने के लिये विवश हैं । उनके साथ पशुओं से भी बदतर व्यवहार होता है । उनके पूरे बदन को इन मलेच्छों द्वारा नोंचा जाता है । दांतों से काटा जाता है , नाखूनों से खाल उधेड़ ली जाती है । अमानवीय कृत्य किये जाते हैं उनके साथ । वे बेचारी चीखने चिल्लाने के अतिरिक्त और कुछ नहीं कर सकतीं हैं । न जाने कितने शाप दिये होंगे उन अभागे स्त्रियों ने । पर हाय रे दैव ! किसी का भी शाप फलीभूत नहीं हुआ श्रधा तो प्रलय आ जानी चाहिए थी यहां पर । 

जो स्त्री पतिव्रता है अर्थात जिसने सपने में भी किसी पर पुरुष को नहीं देखा हो । मन वचन और कर्म से जिसने अपने पति को ही भगवान मान कर पूजा की हो । ऐसी सती स्त्री को एक साथ पांच पांच दस दस "जानवरों" से नुचवाया जाये तो उसे कैसा लगेगा ? वह भगवान से एक ही प्रार्थना करती होगी कि हे भगवान, ऐसे जीवन से तो मौत ही अच्छी है । मगर ईश्वर उनकी नहीं सुनते हैं । उन्हें मौत भी नहीं आती है और वे बेचारी ऐसा गंदा और अभिशप्त जीवन जीने को मजबूर हो रही हैं । उनका जबरन धर्म परिवर्तन कराया जाता है । अब आप ही बतायें ऐसी स्थिति में स्त्रियों को क्या करना चाहिए" ? 

रानी जैतल दे की इस बात पर वहां एकदम सन्नाटा छा गया । सब स्त्रियां बड़े ध्यान पूर्वक उनकी बातें सुन रही थीं । सुंई भी गिरे तो आवाज आ जाये, इतना सन्नाटा फैला हुआ था वहां पर । रानी जैतल दे ने सब स्त्रियों की ओर देखा । सबके चेहरों पर आक्रोश था , क्षोभ था , भय भी था । कोई कुछ बोलने को तैयार नहीं थी । 

"अरे बोलो भई,  कुछ तो बोलो । बताओ क्या करना चाहिए ऐसे में हम स्त्रियों को " 
सब एक स्वर में बोलीं "ऐसी जिंदगी जीने के बजाय मर जाना चाहिये । इतना अपमान, अत्याचार सहकर क्या जीना" ? 
"बिल्कुल सही कहा आप लोगों ने । रणथम्भौर की महारानी रंग दे और चित्तौड़गढ की महारानी पद्मिनी ने यही किया था । मलेच्छों के हाथों में पड़कर अपना शील भंग करवाने के बजाय मर जाना ही श्रेयस्कर है । रोज तिल तिल सड़कर मरने के बजाय खुद ही जलकर मर जाना श्रेष्ठ है । इसीलिए अपना मान सम्मान बचाने हेतु ही यह "जौहर" की प्रथा चलाई गई है । जिसको अपने जीवन का उद्धार करना हो वह जौहर की पवित्र ज्वाला में भस्म होकर स्वर्ग में अपने पति से मिल सकती है । नहीं तो यहां धरती पर दसियों साल नर्क भुगतती रहे । क्यों क्या खयाल है" ? 
"पर दीदी, जिंदा जलना कोई साधारण काम है क्या ? एक जरा सी लपट लग जाती है हाथ पैर में तो उसमें ही हम लोग चिल्ला पड़ते हैं । और जौहर में तो जलती आग में कूदना पड़ता है । बहुत दुस्साहस का काम है दीदी" । 
"हां, काम तो दुस्साहस का ही है । पर शायद तुम्हें यह पता नहीं है कि राजपूत तो जाने ही दुस्साहस के लिये जाते हैं ।  राजपूत स्त्रियां अपने पतियों से किसी भी स्तर पर कम वीर नहीं हैं । इसलिए वे वीर क्षत्राणियां कहलाती हैं । पर शायद तुम्हें यह भी पता होना चाहिए कि नारी का शरीर भी एक मंदिर की तरह ही पवित्र होता है जिसमें उसका पति उसका भगवान है जिसकी मूर्ति उसके मन में बसी हुई रहती है । एक पत्नी कभी सपने में भी इस पवित्र मंदिर पर किसी पर पुरुष का हाथ भी लगने नहीं देना चाहती है । इसलिए इस पवित्र काया की रक्षा करना उसका पहला कर्तव्य है । यदि वह इसकी रक्षा करने में असमर्थ हो तो इस पवित्र "मंदिर" को पवित्र अग्नि के सुपुर्द करना ही अच्छा है । ऐसी स्थिति में उसके पास अग्नि में जलकर मर जाने के अतिरिक्त अन्य कोई विकल्प नहीं है । तब वह जौहर करती है । ये हमारा सौभाग्य है कि हमारे समय में हमको दो दो जौहर के बारे में सुनने का सुअवसर मिला । महारानी रंग दे और पद्मिनी ने जो मानक स्थापित कर दिया है राजपूत स्त्रियों के समक्ष , वह अद्भुत है । मेरी समझ में तो ऐसी विपरीत परिस्थित में "जौहर" करना ही सर्वश्रेष्ठ विकल्प है । क्यों बहनों" ? 
"आप सही कहती हैं दीदी । जौहर करके सब कष्टों से मुक्ति पा लो । गुजरात के राजा की पराजय और मृत्यु के पश्चात रानी कमला देवी के साथ क्या हुआ था ? उनका उदाहरण हमारे सामने है" 
"हां , यह सही बात है कि गुजरात में जौहर प्रथा का प्रचलन नहीं है । जौहर प्रथा तो केवल राजपूताने में ही प्रचलित है अन्य कहीं नहीं । इसलिए गुजरात के महाराज कर्ण की पराजय के पश्चात उनका वध कर दिया गया और रानी को जबरन अलाउद्दीन खिलजी से विवाह करना पड़ा"  । 
"भगवान ऐसे दिन किसी को भी नहीं दिखाये । क्यों सही है ना दीदी" ? 
"हां, रानी सा । ऐसे दिन कौन देखना चाहता है ? पर अगर मजबूरी ही पड़ जाये तो जौहर कर लेना चाहिए । मैं तो यही कहूंगी" । 
"जी दीदी , सही कहा आपने । देश के लिए ये शरीर कुर्बान हो जाये इससे बढकर बात और क्या हो सकती है" ? 

इस बात पर सबने सहमति जता दी थी । 

क्रमश: 

श्री हरि 
7.10.22 




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3 Comments

Chetna swrnkar

10-Oct-2022 06:47 PM

Very nice

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Gunjan Kamal

09-Oct-2022 09:26 AM

👌👏🙏🏻🙏🏻

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Renu

09-Oct-2022 12:12 AM

👍👍

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